Zakat Ada Karne Ka Tarika :- अस्सलामु अलैकुम नाजराने दीन आज हम आपको बताने जा रहे है, की जकात देने का सबसे आसान और हलाल तरीका क्या होता है।
जैसे ही रमजान उल करीम आते हैं, तो बोहोत सी चीजे हमारे दिमाग में आती है की क्या कैसे करें उसमे से सबसे पहले आता है की जकात कब अदा की जाए ? कैसे अदा की जाए ? किसको अदा की जाए ? और किसको न अदा की जाए।
जैसे की हम जानते की ही अल्लाह ताला ने कुरान में जकात का बोहोत बार जिक्र किया है, और ये नमाज के साथ साथ हम सब के उपर फर्ज़ भी है।
जकात का ज़िक्र हदीसों में भी किया गया है, इसलिए हर मुसलमान को चाहिए की वो अपने माल के हिसाब से जकात अदा करे।क्युकी जकात हर मुसलमान पर फर्ज़ है।
आइए हम जानते हैं, की जकात क्या है ? जकात किस पर फर्ज़ है और इसको देना का सबसे आसान तरीका क्या है ?
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ज़कात किसको कहा गया है ? – Zakat In Hindi
अल्लाह की लिए अपने माल का एक तय किया गया, हिस्सा किसी गरीब मिस्कीन या जरूरतमंद रिश्तेदार को देना जकात कहा गया है। जकात हर मुसलमान पर फर्ज़ है।
ज़कात किस पर फर्ज़ होती है ?
मुसलमान अमीर हो या गरीब जकात सब पर फर्ज़ है,अपने माल में से जकात देना ये हर मुसलमान पर फर्ज़ होता है। अल्लाह ताला ने जकात देने की भी एक लिमिट तय की है, जो कुछ इस तरह है की अगर उस लिमिट के जितना पैसा या माल आप पर है, तो आपको जकात अदा करनी होगी और अगर उतना पैसा आपके पास नही है तो नही अदा करनी होगी। वो लिमिट कुछ यू है की
साढ़े 52 तोला चांदी जो 612 ग्राम बनती है,तो अगर आपके पास 612 ग्राम चांदी हो या उससे ज्यादा या उतना ही नकद पैसा हो या कोई कोई ज़ेवर हो तो आप उस लिमिट के दायरे में आते हैं और आप पर जकात फर्ज़ है और आपको वो हर हाल में अदा करनी ही होगी।
ज़कात किन किन चीजों पर फर्ज़ है ?
वैसे तो अल्लाह का हम पर करम है, की रहम करने वाले अल्लाह ने हर चीज़ पर जकात फर्ज़ नही की, क्युकी ऐसे तो इंसान के पास माल के रूप में बोहोत सी महंगी चीज़े भी होती है, जैसे घर, बंगला,गाड़ी,और ज़मीन।
लेकिन इन सब पर जकात वाजिब नहीं है। तो आइए जानते है, जकात किन किन चीजों पर फर्ज़ है। जिन चीज़ों पर जकात फर्ज़ है वो ये चार चीज़े हैं।
- नकद
- चांदी 612 ग्राम या उससे ज़्यादा
- सोना
- बिजनेस का माल
ज़कात अदा करने का सबसे आसान तरीक़ा – Zakat Ada Karne Ka Tarika
वैसे तो अल्लाह ने अपने बंदों के लिए हर काम में आसानी पैदा की है,अल्लाह अपने बंदे से बोहोत प्यार करता है। बेशक वो बड़ा रहम करने वाला है। अब हम आपको बताने जा रहे की कैसे आप कुछ आसान तरीको को अपना कर अपनी जकात दे सकते हैं।
ज़कात अदा करने के लिए सबसे पहले एक महीना चुन लेना चाहिए,और उसमे सबसे आला सवाब कमाने का महीना है रमजान।रमजान का महीना आने से पहले ही अपनी जकात का हिसाब लगा लेना चाहिए।
आपके पास कितनी दुकानें हैं और कितने गोदाम हैं,और उन दुकानों और गोदामों के अंदर कितना माल है उसका हिसाब लगा लो और उसकी भी जकात अदा करो।
जितना भी माल आपके पास है उसको जमा करके देखिए की उसकी कीमत कितनी निकल रही है उसको अगर बाजार में बेचेंगी और अगर कीमत 1 लाख निकल रही है तो उसमे से अपना लिया हुआ कर्ज निकाल दो।
अब देखो आपके उपर कर्ज कितना है और उपर बताए गए तरीके से उसको अदा करे। अ
गर आपके पास पांच लाख है और क़र्ज़ है, दो लाख तो दो लाख निकाल कर जो तीन लाख बचा है, उस पर ज़कात देना होगा। और अगर आपके पास पांच लाख है और क़र्ज़ है, छ लाख एक लाख कम है, क़र्ज़ चुकाने को तो अब आपको ज़कात नहीं देना होगी।
जिसके पास जो कुछ भी है वो सब को जोड़ कर देखे अगर जोड़ने पर साढ़े बावन तोला चांदी जितनी रकम हो जाती है, तो जकात देना होगी याद रहे आप अपने शहर में जो चांदी और सोने की कीमत चल रही है उसी से हिसाब लगाए और जकात दें वरना गुनाहगार होंगे।
Conclusion ( नतीजा )
आज के हमारे इस टॉपिक Zakat Ada Karne Ka Tarika से हमारा ये नतीजा निकलता है, की जकात देना हर मुसलमान पर फर्ज़ है। अल्लाह की रजा के लिए अपने पास रखे हुए माल में से तय किए गए हुए हिस्से को किसी गरीब, मिस्किन या जरूरतमंद को देना जकात कहा जाता है। जकात देना बोहोत जरूरी है और जो इंसान जकात नही देगा वो गुमहागर होगा।
अगर आपके पास साढ़े सात तोला सोना है और कॅश ,चांदी वगेरा और कुछ भी नहीं है, ज़कात देनी होगी आपके पास कुछ भी नहीं है, देने को तो आपको सोना बेच क्र ज़कात देनी होगी अगर सोना बीवी की मिलकियत में है, उसे अपनी माँ से मिला है तो बीवी उसकी ज़कात देनी होगी या फिर बीवी उस सोने को शोहर की मिलकियत में देदे तो फिर शौहर उसकी ज़कात दे सकता है।
जकात अल्लाह की तरफ से हमारे लिए नियामत है, क्युकी जकात देने के बाद हमारे तमाम माल की हिफाजत हो जाती है और अल्लाह हमसे उसका हिसाब भी नही लेगा और वो खरा हो जाता है।
अपनी जकात का पैसा सही जगह पहुंचाना भी जकात निकालने वाले की जिम्मेदारी है। इसलिए किसी संस्था को वो जकात के पैसे देने से बेहतर है, की अल्लाह के फरमाए हुए तरीके से ही जकात दे जैसे गरीब, मिस्कीन या फिर जरूरतमंद रिश्तेदार को ही जकात दे और वो भी अपने हाथों से ही दे क्युकी ये आपकी जिम्मेदारी है।
अल्लाह हम सब को रमजान के साथ साथ आम दिनों में भी नेक काम करने की तौफीक आता फरमाए और हम सब को गुनहाओ से महफूज रखे।हमे अल्लाह से अपने गुन्हानो की बोहोत माफी मांगनी चाहिए, बेशक अल्लाह माफ करने वाला है और माफी मांगने को पसंद करता है।अल्लाह हम सब को नेक बनाए और अच्छे काम करने की तौफीयक आता फरमाए।
आमीन सुममा आमीन।
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