Qaza Roza Kaise Rakhen :- असलामुअलैकुम बिरादराने दिन क़ज़ा ( किसी फ़र्ज़ या वाजिब इबादत को इस के मुक़र्ररा वक़्त के बाद अदा करना ) रोज़े से मुराद है, उस रोज़े का रखना जिसे इसलिए रखा जाये क्युकी आपने फर्ज़ रोज़े को छोड़ दिया हो और आप उसकी भरपाई उसी तरह करना चाहते है, जिस तरह से अल्लाह ने अपने कलामे पाक कुरआन मै फ़रमाया है, वो कितने दिनो मे किस वक़्त और किस हालत मैं रखना होता है, बताने की कोशिश करेंगे।
- छूटे हुए रोज़ों की अदायगी करने के लिए दूसरा रास्ता होता है, कजा रोज़े रख लेना आपने रमज़ान ए मुबारक के महिने में आपके जितने रोज़े छूट जाते हैं ।
- उनके बदले आपको आने वाले महीनों में उन रोज़ों के क़जा रोजे रखने होंगे। या फिर रख सकते हैं।
- ऐसे में जिन लोगों के रमजान के रोजे छूट गए थे वजह कुछ भी हो सकती है।
- हदीसों में आया है। रमजान के रोज़े अगर छूट जाए तो उसके लिए आपको छूटे हुए रोजों का कफ्फारा या कज़ा रखना पड़ता है, अगर ना रखा जाए तो वह गुनाह होता है।
Table of Contents
क़ज़ा रोज़े दो किसम के होते है :
- क़ज़ा रोज़े रखना
- रोज़े का कफ्फारा
1. कजा रोजा
कजा रोजा आप रमजान के मुबारक महीने से लेकर के अगले रमजान के महीने शुरू होने से पहले तक कभी भी रख सकते हैं, लेकिन आपको बता दें, आप उन महीनों में कजा रोजों को रखें जिन महीनों की फजीलतें काफी ज्यादा है।
2. कफ्फारा रोज़े
- इस्लाम में कफ्फारा रोज़े रखने का का मतलब यह होता है, कि आप को छुटे हुए रोजों को अदा करने के लिए अलग से रोज़ा नहीं रखना होता है, आपको एक गुलाम या बंदी आजाद करना होता है।
- या 60 दिनों तक लगातार रोजा रखना होता है, इसके अलावा या तो आपको 60 मिसकीनों को खाना खिलाना होता है. रोज़े का कफ्फारा के बारे मैं जानने के लिए हमारा दूसरा आर्टिकल पढ़िए।
क़ज़ा रोज़ो की नियत की दुआ
- ( दुआ हिंदी ) व बि सोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमजान।
- ( दुआ अरबी ) َوَبِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتَ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ
क़ज़ा रोज़े कैसे रखे – Qaza Roza Kaise Rakhen
रमज़ान के फर्ज रोज़ों की तरह क़जा रोज़े भी रखे जाते हैं :
- आपको सबसे पहले सेहरी में उठना है। और सेहरी करके सुन्नत अदा करनी है।
- फजर की अज़ान से पहले सेहरी करले और रोज़े की नियत करलें
- इसके बाद आपको नियत करनी है।अब सेहरी से लेकर इफ्तार तक आप अल्लाह की ज्यादा से ज्यादा इबादत करें अल्लाह के जिक्र से अपने लबों को तर रखें दुआ मांगे नमाजे पढ़े तस्बी की तिलावत करें और तमाम उम्मते मोहम्मद के लिए दुआ करें।
अब वक्त आता है रोज़ा इफ्तार का
- रोज़ा खोलने से पहले कसरत से दारूद शरीफ़ पढ़े और दुआ मांगे क्योंकि रोज़ा खोलने से पहले अल्लाह अपने बंदों से राज़ी होता है और दुआ कबूलता है इसलिए इस वक्त को ज़ाया ना जाने दें।
- रोज़ा इफ्तार मगरीब की अज़ान के बाद खोल लें इंशाल्लाह आपका रोज़ा मुक्कमल हो जायेगा।
- मरने वाले के क़ज़ा रोज़ हमें के वारिस को रखना चाहिए।
- हज़रत आयशा रा ने कहा रसूल अल्लाह ने फ़रमाया देखा” जो शक्स मार जय या प्रति फ़र्ज़ रोज़ रखने बाकी हो तो का वारिस ( इस की तरह से ) क़ज़ा रोज़ रखे ” सही बुखारी वो मुस्लिम।
- वज़हत: किसी शक के रोज़ की क़ज़ा बाकी हो या वो मरने वाला हो या बेमर हो तो अपने अयाल या वारिस हमें के ऊपर जो भी क़र्ज़ या कुछ उसका किताब वसियत बताते हैं उस साथ कबा रोज़ की गिनती बताता है के बच्चो को अपने बाप के कज़ा रोज़ जो रे जय यूज़ रखना पडे गे ऐसे ही कोई रमज़ान के माहेने में बीमार हो जाए या बिमारी इतनी बड़ी के वो मर गया तो हमें के बच्चों को चाये के हमें बचाए रख की।
Conclusion, निष्कर्ष
दोस्तों उम्मीद करते हैं, कि अपने इस आर्टिकल Qaza Roza Kaise Rakhen को तस्सली बक्श आखिर तक पूरा पढ़ा होगा और इसी के साथ क़ज़ा रोज़े कैसे रखें जान कर अच्छा लगा होगा इसका मसला भी आपको पूरी तरहा पता चल चुका होगा। और अगर माज़ कोई doubt या सवाल आता हो तो आप हमारे comment box में मैसेज कर के पूछ सकते हैं हमारी टीम आपके सवालों के जवाब ज़रूर देगी।
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