रमज़ान के मसाइल – Ramadan Ke Masail

Ramadan Ke Masail

  अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान बहुत रहम वाला है

रोज़ा कुरआने मजीद की रोशनी में

        BISMILLAHIR REHMANIR RAHEEM

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

 अस्सलामु अलैकुम हजरत

रमज़ान के रोज के हदीस और Ramadan Ke Masail चलिए जानते है, “ऐ लोगों जो ईमान लाये हो। तुम पर रोजे फर्ज कर दिये गये। जिस तरह तुम से पहले लोगों पर फर्ज किये गये थे। ताकि तुम परहेज़ गार बन जाओं (सुरह बकरा-आयत-183)

रमजान वह महीना है जिसमें कुरआन नाजिल किया गया । तुम में से जो शख्स इस महीने को पाये तो उसे चाहिये कि रोजा रखें। हां अगर कोई बीमार हो या मुसाफिर तो उसे दूसरे दिनों में यह गिनती पूरी करना चाहिये । (सुरह बकरा-आयत-185)

हदीस– हज़रत अबू हुरैरा रदियाल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं “जब रमज़ान आता है, आसमां के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं। एक रिवायत में है के “जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं।” एक रिवायत में है के “रहमत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं” (बुखारी और मुस्लिम शरीफ)

हदीस– हज़रत अबू हुरैरा रदियाल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत है के हुज़ूर-ए-अक़दास सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया के “रमज़ान आया ये बरकत का महिना है अल्लाह तआला इस्के रोज़ तुमपर फ़र्ज़ के दरवाज़े इसमे खोल दिए जाते हैं और दोजाख के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और खोज शैतानों के तौके दाल दिए जाते हैं। (नासाई शरीफ)

हदीस– हज़रत सहल इब्ने साद रदियाल्लाहु त’आला अन्हु से मरवी है के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं “जन्नत में 8 दरवाजे हैं, उनमे एक दरवाजा का नाम रैय्यान है उस दरवाज़े से वही जायेंगे जो रोज़े रखते हैं।

हदीस– हज़रत अबू हुरैरा रदियाल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत है के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो ईमान की वजह से और सवाअब के लिए रमज़ान का रोज़ा रखेगा उसके गुनाह बख्श दिए जायेंगे और जो इमाम और सवाब की नियत से रमज़ान की रातों के कयाम करेगा (नवाफिल पढेगा) उसके अगले गुनाह माफ कर दिए जाएंगे।

हदीस– हज़रत अबू हुरैरा रदियाल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत है के रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया “हर चीज़ के लिए ज़कात है और बदन की ज़कात रोज़ा है और रोज़ा आधा सब्र है। (इब्ने माजा)

हदीस– हज़रत अबू मसूद गफ़री रदियाल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है के हुज़ूर-ए-अक़दास सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया आगर बंदों को मलूम होता के रमजान क्या चीज है तो मेरी उम्मत तमन्ना करती की पूरा साल रमज़ान ही हो (इब्ने खुजैमा)

हदीस– हज़रत सलमान फ़ारसी रदियाल्लाहु त’आला अन्हु से रिवायत है के हुज़ूर-ए-अक़दास सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया “रमज़ान की रात में क़याम (नमाज़ पढ़ना) तातो (सुन्नत है) जो इसमे नेकी का काम करे तो ऐसा है जैसे और किसी माहे में फ़र्ज़ अदा किया और इस्मे जिसने फ़र्ज़ अदा किया तो ऐसा है जैसे और दिनो में 70 फ़र्ज़ अदा किया। (बैहाकी)


मसैलफिक़्हिया

रोज़ह भी मिस्ल नमाज़ के (नमाज़ की तरह) फ़र्ज़ ऐन है – इसकी फ़र्ज़ियत का मुनकीर काफ़िर और बिला उज़्र तार करने वाला सख़्त गुनहगार और दोज़ख का मुस्तहीक (हक़दार) है। जो बच्चे रोजाह रख सकते हैं उन्हें रखा जाए।


रोज़े की तारिफ

रोज़ह उर्फ़ शर’ए में मुसल्मान का इबादत की नियत से सूबा सादिक से गुरुब-ए-आफताब तक अपने को जान बुझकर खाने पीने और जिमा- ए (हमबिस्तरी) से बाज़ रखने को कहते हैं।


रोज़े की नियत के मसाइल | Ramadan Ke Masail

मसाइल– अदा रोज़े रमज़ान और नज़र मुअइयां और नफ़ल के रोज़े के लिए नियत का वक़्त गुरुबे आफ़ताब से ज़ुहुवे कुबरा (शूरु ज़वाल) तक है।

मसाइल– ज़ुहुवे कुबरा (शूरु ज़वाल) नियात का वक़्त नहीं बाल के इसे पहले तय हो जाना ज़रूरी है और खास ज़ुहुवे कुबरा (शूरु ज़वाल) के वक़्त नियत की तो रोज़ाह ना हुआ।

मसाइल– नियत दिल के इरादे का नाम है, जुबान से कहना शर्त नहीं मगर जुबान से कहना मुस्तहब है।

मसाइल– रात में नियात की फिर उसके बाद रात ही में खाया, पिया तो नियात नहीं गई, वही पहली ही नियत काफ़ी है फिर नियत करने जरूर नहीं।

मसाइल– दिन में नियात करे तो ज़रूरी है के ये तय करे के मैं सुभा सादिक से रोज़हदार हु और अगर ये नियत है के अब से रोज़हदार हु सुभा से नहीं तो रोज़ा ना हुआ।

मसाइल– दिन में वो नियात सही है के सुबा सादिक से नियात करते वक्त रोजह के खिलाफ कोई अमर न पाया गया हो लिहाजा अगर सुबाह सादिक के फुरन बाद कसदन (जान बुझकर) खाया, पिया उसके बाद नियत तो रोज़ा ना हुआ और अगर सुबा सादिक के बाद भूल कर खा पि लिया अब नियत की तो रोज़ा हो जाएगा।

मसाइल– अगर रात में रोजे की नियत की फिर पक्का इरादा कर लिया के नहीं रखेगा तो वो नियत जाति रही अगर नई नियात ना की और दिन भर भुका, प्यासा रहा तो रोजाह ना हुआ।

मसाइल– सेहरी खाना भी नियत है कहा है (चाहे) रमजान के रोज के लिए हो या किसी और रोजह के लिए।

मसाइल– सेहरी खाते वक्त ये इरादा है के सूबा को रोजा न होगा तो ये सेहरी खाना नियत नहीं।

मसाइल– अदा रमज़ान और नज़रें मो’इयां और नफ़ल के अलावा बाकी रोज़े मसलन क़ज़ाए रमज़ान और नज़र गैर मुअय्यान और नफ़ल की क़ज़ा (यानी नफ़्ल रोज़ह रखकर तोड़ दिया था उसकी क़ज़ा) ऐन (जैसे) रात में नियत करना जरूरी है।

मसाइल– गुरुबे आफताब से जुहुवे कुबरा (शूरू जवाल) तक सिरफ तीन किस्म के रोजे की नियत हो शक्ति है।

1.) अदा रमजान।

2.) नज़रीन मो’अय्यन।

3.) नफली रोज़े

इनके अलावा जितने रोज़े हैं मसलं – क़ज़ाए रमज़ान वागैरा तो इनकी नियत का वक़्त गुरुबे आफ़ताब के बाद से सुबाह

सादिक के चमकते वक़्त तक है। तो अगर किस रमज़ान के क़ज़ा रोज़ की नियत सुबा सादिक के बाद की, रोज़ा ना हुआ।


Conclusion, निष्कर्ष

दोस्तों उम्मीद करते हैं, कि अपने इस आर्टिकल Ramadan Ke Masail को तस्सली बक्श आखिर तक पूरा पढ़ा होगा और इसी के साथ रमजान के मसाइल जान कर अच्छा लगा होगा इसका मसला भी आपको पूरी तरहा पता चल चुका होगा।

और अगर माज़ कोई doubt या सवाल आता हो तो आप हमारे comment box में मैसेज कर के पूछ सकते हैं हमारी टीम आपके सवालों के जवाब ज़रूर देगी।

शुक्रिया खुदा हाफिज


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