Ramzan Ke Roze Ka Kaffara ( रमज़ान के रोज़े का कफ्फारा यानी रोज़ा छोड़ने का जुर्माना )
- कुरआन शरीफ में जगह जगह और सैकड़ो हदीसों में रमज़ान के रोज़ों का ज़िक्र मौजूद है अगर कोई शख़्स रमज़ान का सिर्फ़ एक रोज़ा जान बूझ कर छोड़ दे और साल के 330 दिन रोजे रखे तो वह इसका बदला नहीं चुका सकता। जिसके फ़राइज़ पूरे न हों उसका कोई नफ़िल कबूल नहीं है।
- वह शख्स जिस पर रोजा फर्ज होने की तमाम शरायत पाई जाती हो रमजान के उस रोज़े जिसकी नियत सुबह सादिक से पहले कर चुका हो जानबूझकर मुंह के जरिए पेट में कोई ऐसी चीज पहुंचाई जो इंसान की दवा या गिजा़ में इस्तेमाल होती हो यानी उसके इस्तेमाल से किसी किस्म का जिस्मानी नफा या लज्जत मकसूद हो।
- या कोई शख्स जिमा करें या कराएं (जिमा में आला तनासुल का दाखिल हो जाना काफी है मनी का खारिज होना शर्त नहीं)
- इन सूरतों में कजा़ और कफ्फारा दोनों वाजिब होंगे मगर शर्त यह है कि जिमा ऐसी औरत से किया जाए जो जिमा के काबि़ल हो ।
- कफ्फारे का लाजिम होना रमजान मुबारक के रोजे तोड़ने के साथ खास है , गैर रमजान के रोजे में सिर्फ कजा़ लाजिम है कफ्फारा नहीं
- साठ (60) मिसकीनों (गरीब) को दो वक़्त खाना खिलाया जाए।
- अगर कोई कफ्फारे की वजह से फक़ीरों को खाना खिला रहा है तो दो वक्त मुसलसल खिलाना जरूरी नहीं है बल्कि दिन रात में खिलाया।
- या दोनों दिन रात का खाना खिलाए
- या दिन ही दिन में खिलाये
- अगर बीच में नागा हो जाए तो भी कुछ नहीं है
- बाद में पूरा कर ले हाँ ये जरूरी है कि पहले वक़्त जिन फक़ीरों को खिलाया हो दूसरे वक्त भी उन्हीं को खिलाएं या उसकी कीमत दे दे वो भी जाएज़ है
- अगर खाना न खिलाये बल्कि 60 फक़ीरों को कच्चा अनाज देदे वो भी जाएज़ है
- लेकिन हर मिस्कीन (गरीब) को इतना दे जितना एक आदमी की तरफ से सदक़ा तुल फ़ित्र दिया जाता है
- अगर दो रोज़े तोड़े तो दोनों के लिए दो कफ़्फ़ारे दे जबकि दोनों दो रमज़ान के हों अगर दोनों रोज़े एक ही रमज़ान के हैं
- और पहले का कफ़्फ़ारा अदा न किया हो तो एक ही कफ़्फ़ारा दोनों के लिए काफ़ी है।
- अगर हो सके तो एक बांदी या ग़ुलाम आज़ाद करें।
- हालाकि इस दौर मैं गुलाम नही होते है इस्लाम ही वह मज़हब है जिसने सबसे पहले ग़ुलाम प्रथा को ख़त्म करने की शुरूआत की।
- यहाँ पर क़सदन रोज़ा तोड़ने के जुर्माने के तौर पर ग़ुलाम या बांदी को आज़ाद करने का हुक्म फ़रमाने मे भी यही हिकमत है।
- इस मक़सद को हासिल करने के लिये शरीयत के क़ानून बनाकर और दुनिया व आख़िरत के इनामात बताकर ग़ुलामी की ज़ंज़ीरों में जकड़े हुए लोगों को आज़ाद कराने के लिये लोगों को तरग़ीब दी।
- या तो 2 महीने मुसलसल रोजे रखे
- लगातार साठ 60 रोज़े रखें, एक रोज़ा भी छूट गया तो दोबारा से साठ रोज़े रखने होंगे। पहले के रोज़े गिनती में नहीं आयेंगे चाहे बीमारी या किसी मजबूरी की वजह से ही छूटा हो।
- औरत को हैज़ की वजह से बीच में रोज़े छूट जायें तो पाक होने पर बाक़ी रोज़े रखकर साठ पूरे करने से कफ़्फ़ारा अदा हो जायेगा।
- रसूलुल्लाह फ़रमाते हैं मैं सो रहा था, दो शख़्स हाज़िर हुए और मेरे बाज़ू पकड़ कर एक पहाड़ के पास ले गये और मुझसे कहा चढ़िये। मैंने कहा मुझमें इसकी ताक़त नहीं। उन्होंने कहा हम सहल कर देंगे। मैं चढ़ गया जब बीच पहाड़ पर पहुँचा तो सख़्त आवाज़ें सुनाई दीं, मैंने कहा ये कैसी आवाज़ें हैं। उन्होंने कहा यह जहन्नमियों की आवाज़ें हैं फिर मुझे आगे ले गये। मैंने एक क़ौम को देखा वो लोग उल्टे लटके हुए हैं और उनकी बाछें चीरी जा रही हैं जिससे ख़ून बहता है। मैंने कहा ये कौन लोग हैं कहा ये वो लोग हैं कि वक़्त से पहले रोज़ा इफ़्तार कर लेते हैं। (इब्ने ख़ुज़ैमा व इब्ने हब्बान अपनी सही में अबू उमामा बाहली से रावी )
Conclusion ( निष्कर्ष )
दोस्तों उम्मीद करते हैं, कि अपने इस आर्टिकल Ramzan Ke Roze Ka Kaffara को तस्सली बक्श आखिर तक पूरा पढ़ा होगा और इसी के साथ रमज़ान के रोज़े का कफ्फारा यानी रोज़ा छोड़ने का जुर्माना
जान कर अच्छा लगा होगा इसका मसला भी आपको पूरी तरहा पता चल चुका होगा। और अगर माज़ कोई doubt या सवाल आता हो तो आप हमारे comment box में मैसेज कर के पूछ सकते हैं हमारी टीम आपके सवालों के जवाब ज़रूर देगी।
शुक्रिया खुदा हाफिज
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