Marhoom Ke Liye Dua :- अल्लाह से मरहम की दुआ मांगने के लिए आप सब से पहले वुजू कर लें क्योंकि वुजू की हालत में दुआ मांगना बेहतर माना जाता है। उसके बाद क्ब़िले की तरफ़ मुंह को रखे और बैठ जाएं।
बैठने का तरीका यह होता है, कि जैसे आप किसी नमाज़ में अत्तहीयात की हालत में बैठते हैं उसी प्रकार आपको मरहम की दुआ के लिए भी बैठना होता है।
पालथी मारकर बिलकुल ना बैठे, इसे बेअदबी माना जाता है। लेकिन आप की यदि कोई मजबूरी है तो आप बैठ सकते है।
मरहम की दुआ मांगते वक्त आपका ध्यान अल्लाह ताला की अज़्मत व कुदरत पर होनी चाहिए। अब आप दोनों हाथों को मरहम की दुआ के लिए ऊपर उठा कर सबसे पहले दुरूद शरीफ़ पढ़ें।
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मरहूम के लिए दुआ हिंदी में – Marhoom Ke Liye Dua
इसके लिए कोई विशेष दुआ नहीं है। लेकिन बताए गए तरीकों को अपना है आपकी दुआ अल्ला ताला ज़रूर कबूल करेगे।
सबसे पहले मरहम की दुआ में दुरूद शरीफ़ पढ़ना जरुरी माना गया है। क्योंकि हदीस में लिखा है कि जो दुआ बिना दुरूद शरीफ़ के मांगी जाती हो वह दुआ ज़मीन और आसमान के बीच में ही रहती है और कबूल नहीं होती है।
ऐसा करने के बाद आप अल्लाह ताला की तारीफ़ मई जो बोलना चाये वो बोले और उसमें अच्छे-अच्छे कलिमात पढ़े। इसके बाद इसमें आज़म और अस्मा-ए- हुस्ना में से कोई एक या दो या उससे ज्यादा भी पढ़ सकते है।
इन के बारे में हदीस में आता है कि उनके दुआ पढ़ने के बाद जो कोई भी दुआ मांगी जाए वह कभी ख़ारिज़ नहीं होती है। अब आप सबसे रहमत बक्ष्ने वाले अल्लाह ताला के सामने अपनी जरूरतों को पेश करें।
सबसे ज्यादा दुआ किस समय कबूल होती है ?
- सुबह के समय जब फज्र की दुआ पढ़ी जाती है
- अजान के बाद की जाने वाली दुआ
- सलाहा के दौरान की जाने वाली दुआ
- वह दुआ जिसको नमाज़ के बाद किया जाता हैं
- जुम्मा के दिन की जाने वाली दुआ
- जुमे की नमाज क दोरान जब इमाम दो खुतबों के बीच बैठते हैं उस समय की जाने वाली दुआ
- रात में जगने के बाद जब आप बाजू से फारिक होते हैं इस समय की जाने वाली दुआ
- ज़मज़म का पानी पीने से पहले मरहम की दुआ करनी कहिए
- रमजान के महीने में करी जाने वाली दुआ
- लैलत-उल-क़द्र की रात को की जाने वाली दुआ।
- जब आप मरीज को देखने जाते हैं उस समय की जाने वाली दुआ
- जब बारिश होती है उस समय की जाने वाली दुआ
अल्लाह से मफ्फी की मरहम की दुआ
जब आप मरहम की दुआ कर रहे हो तो दुआ पढ़ते समय रो कर, गिड़-गिड़ा कर अपनी दुआ को कुबूल कराएं, और सब कुछ मांग लेने के बाद दुआ के अंत में वापस से दुरूद शरीफ़ पढ़ें।
मरहम की दुआ मांगने का सबसे अफ़ज़ल तरीका यह है कि आप जो भी दुआ मांगे, वह हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वास्ते से कुबूल कराएं। हुजूर का वास्ता, दुआ कुबूल होने का सबसे बड़ा मधियम है।
जब मरहम की दुआ पूरी हो जाए तब अंत में अपने दोनों हाथों को मुंह पर फेर लें, और दिल में ये विश्वास रखे कि दुआ जरूर कुबूल होगी। अगर दुआ की कुबूलियत का असर ना दिखे तो दुखी ना हुए।
इस्लामिक विशेषज्ञों के अनुसार मरहम की दुआ माँगने का तरीका
मुसलमान अल्लाह ताला के साथ एक मजबूत रिश्ता बनाने और अपने जीवन के सभी चरम में उनकी मदद लेने के लिए दुआ करते हैं। मरहम की दुआ करने के कई तरीके हैं, लेकिन स्थिति के आधार पर सबसे सही तरीके अलग अलग हो सकता है।
कुछ मुसलमान दुआ के लिए एक निर्धारित तारिका का पालन करते हैं, जबकि अन्य केवल अल्लाह से पूछते हैं, कि उन्हें अपने शब्दों का उपयोग करके क्या चीज चाहिए।
इस्लामी विशेषज्ञों का कहना है, कि दुआ करने का सबसे सही तरीका व्यक्ति की जरूरतों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
कुछ लोगों को दुआ करते समय एक अलग प्रकार के तारिके का उपयोग करने में मदद मिल सकती है, जबकि अन्य लोगों को स्वचालित रूप से दुआ करना अधिक लाभदायक हो सकता है।
दुआ करने का कोई उचित या अनुचित तरीका नहीं है; जब तक आप अपनी दुआओं में सच्चे हैं, अल्लाह उन्हें कबूल करेगे।
दुआ सब से ज्यादा कब कबूल होती है ?
- वह व्यक्ति जिसके साथ अन्याय हुआ हो या प्रताड़ित हो उस की दुआ भुत जल्दी कुबूल होती है
- एक व्यक्ति जो दुर्घटना के बाद एक कठिनाई से गुजर रहा हो।
- एक व्यक्ति जो यात्रा कर रहा हो उस की दुआ भी अल्ला कुबूल करता है
- एक व्यक्ति जो रोजा रखाता हो।
- माँ जब बच्चे को जन्म दे रही हो।
- एक व्यक्ति जो कुरान पढ़ रहा था या पढ़ रहा हो।
- एक व्यक्ति जो हज पढ़ रहा हो या उमराह कर रहा हो।
- एक व्यक्ति जब किसी और के लिए उनके अनुपस्थिति में दुआ करता हो।
- जब कोई मुसलमान अल्लाह को याद कर पाने की स्थिति में हो।
- एक व्यक्ति जो न्यायपूर्ण शासक हो उस की दुआ कुबूल होती है।
मुसलमान कैसे अल्लाह से दुआ करते हैं ?
मुसलमान अलग-अलग तरीकों से अल्लाह से दुआ करते हैं, लेकिन सभी दुआएं एक ही अल्लाह की ओर इशारा करतीहैं। मुसलमानों का मानना है कि अल्लाह एक है, और सबसे बड़ा अल्लाह है, और अल्लाह ने ब्रह्मांड और उसमें सब कुछ बनाया है।
वे तो यह भी मानते हैं, कि अल्लाह सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है, और वह अपनी मर्जी से दुनिया पर शासन करता है।
मुसलमान मक्का की दिशा की और मुंह करके दिन में पांच बार अल्लाह के नमाज़ अदा करते हैं। दिन की पहली नमाज़ को फज्र कहते है, और इसे सुबह होने से ठीक पहले किया जाता है।
दूसरी नमाज़ को जोहर के नाम से बुलाया जाता है, और इसे दोपहर के समय पढ़ा जाता है। तीसरी दुआ को असर क नाम से जाना जाता है, और इसे शाम को पढ़ा जाता है।
चौथी नमाज़ मग़रिब के नाम से जनि जाती है और सूर्यास्त के तुरंत बाद में पढ़ी जाती है। पांचवीं दुआ को ईशा के नाम से जाना जाता है, और इसे देर रात बोला जाता है।
इस्लाम में दुआ करने का सही तरीका क्या होता है ?
मुसलमानों की हर दिन पाँच जरुरी नमाज़ें होती हैं। इन दुआओं को एक विशिष्ट क्रम में नमाज़ और कुरान की तिलावत करना चाहिए। कई दुआएँ भी हैं जो अनिवार्य नहीं हैं, लेकिन फिर भी प्रदर्शन करना बहुत आवशक हैं।
भारतीय मुसलमानों को मक्का शरीफ के तरफ मुंह करके दुआ मांगना चाहिए माज के बाद दुआ मांगा जाए तो बेहतर होगा कबूल होने की संभावना ज्यादा होती है।
इसीलिए कहेते है कि मुसलमान रोजा रखे, नमाज़ पढ़े और कुरान की तिलावत करें| फालतू कामों से दूर रहें और अच्छे इंसान बनने की कोशिश करें| हजूर के तरीके को अपनाएं, अल्लाह ने चाहा तो आपकी दुआ जरूर कबूल होगी।
FAQ’S :
Q1. मगफिरत की दुआ क्या होती है ?
Ans :- ऐ अल्लाह हमने अपना नुकसान अपने आप किया और अगर तू हमें माफ ना करेगा और हम पर रहम न करेगा तो हम बिल्कुल घाटे में रहएगे।
- किसकी दुआ कबूल नहीं होती ?
- जो दुआ इस्लाम के नियमों को तोड़ती हो वो दुआ कुबूल नही होती |
- मगफिरत का मतलब क्या होता है ?
- इस का साधारण भाषा में अर्थ मोक्ष होता है।
- क्या रोजा रखने पर आपकी दुआ कबूल होती है ?
- हां रोजा रखने से आप की दुआ कुबूल होती है
- सूरह बकरा कब पढ़ा जाता है ?
-
सोने से पहेले।
Conclusion :- आप हमने आपको Marhoom Ke Liye Dua के बारे में बताया, उम्मीद करते है, आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा, अगर पसंद आया है, तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे।
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